#मेरा पहला प्यार - जब मंज़िल तक पहुंची एक प्यारी सी लव स्टोरी
कहते हैं कि जब किसी चीज़ को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे आपसे मिलाने में लग जाती है। इस लव स्टोरी में यह बात बिल्कुल सच भी साबित हुई है। 2 अलग सरनेम वाले लोग, दोनों का लिविंग स्टैंडर्ड अलग, दोनों के परिवारों के बीच भी खासा अंतर और सबसे बड़ी बात, दोनों की उम्र और करियर भी अलग… पर किस्मत में उनका मिलना लिखा था तो बस मिल गए। यह कहानी है अनुषा और विक्रम की, जिनकी शादी को अब 9 साल हो चुके हैं पर आज भी दोनों बिल्कुल वैसे ही रहते हैं, जैसे 2008 में मिले थे। अनुषा की ज़ुबानी, उनकी प्रेम कहानी।
‘2007 में मैं कानपुर के एक इंस्टीट्यूट से एयर होस्टेस का कोर्स कर रही थी। उसी बीच मुझे एक 4 स्टार होटल में कुछ दिनों की ट्रेनिंग के लिए भेजा गया। वहां ट्रेनीज़ को सर्व किए जाने वाले खाने को लेकर मेरी खास आपत्ति थी। रोज़ की बहस से तंग आकर एक दिन होटल के जनरल मैनेजर खुद मामले को सुलझवाने आए। … और फिर कुछ ऐसा हुआ कि हम दोनों एक-दूसरे में खो गए। उस समय बात इतनी सीरियस नहीं थी और मैं आगे की ट्रेनिंग के लिए दिल्ली चली गई थी। एक दिन सर का मैसेज आया कि वो भी दिल्ली में हैं। हम मिले और बातों-बातों में उस दिन मुझे भरोसा हो गया कि हमारी कहानी किसी अलग मोड़ तक ज़रूर जाएगी। धीरे-धीरे हमारे बीच बातों का सिलसिला बढ़ने लगा और हमें एक-दूसरे का साथ अच्छा लगने लगा। विक्रम मुझसे 10 साल बड़े हैं और इस अंतर के नाते वे मुझे अकसर बच्चे की तरह ट्रीट करते थे। सच कहूं तो उनके लिए मैं आज भी उनकी चीकू हूं।
15 अगस्त 2008, जब सारा देश आज़ादी के जश्न में डूबा हुआ था, तब मैं और विक्रम एक-दूसरे के प्यार की गिरफ्त में कैद हो रहे थे। विक्रम ने मुझे प्रपोज़ किया और मैंने हां कर दिया। उस समय मैं महज़ 20 साल की थी पर हम दोनों अपना भविष्य तय कर चुके थे। उन्हें मेरी पढ़ाई और जॉब से कोई दिक्कत नहीं थी और मुझे भी वापस कानपुर आने में कोई ऐतराज़ नहीं था, बस समस्या थी तो घरवालों को मनाने की। उसकी ज़िम्मेदारी भी विक्रम ने ले ली थी। काफी कोशिशों के बाद हम दोनों अपने घरवालों को मनाने में कामयाब हो सके थे। इस बीच बहुत कुछ हुआ था। एक मज़ेदार किस्सा बताती हूं। मेरे बर्थडे पर विक्रम एक रिंग लाए थे, जिस मैं घर पर ही छोड़कर दिल्ली आ गई थी। बाद में मम्मी-पापा विक्रम को वह रिंग वापस करने गए होंगे, जहां विक्रम ने मेरे पापा को पापा बोल दिया। बस, घर पर रिश्ते का इशारा दिया जा चुका था।
फिर मैंने मम्मी से बात की। विक्रम मेरे घरवालों से कई बार मिले और आखिरकार घर से शादी की रज़ामंदी मिल गई। विक्रम के घरवालों को मनाना कठिन नहीं था। दोनों परिवारों को मिलवाने के बाद शादी की तारीख निकाली गई, जो कि 14 फरवरी 2009 फिक्स की गई थी। 2 मई 2008 को सगाई करने के बाद वैलेंटाइंस डे पर हम हमेशा के लिए एक-दूजे के हो गए थे। आज हमारे दो छोटे बच्चे हैं और हम अपनी फैमिली को हैप्पी फैमिली मानते हैं। हमारे बीच प्यार आज भी बिल्कुल वैसा है। हम डेट पर जाते हैं, मूवी नाइट्स एंजॉय करते हैं, लड़ते-झगड़ते हैं और फिर एक हो जाते हैं। शादी के 9 साल बाद भी सब एकदम नया सा लगता है। हमारी लव स्टोरी भी आम लव स्टोरीज़ जैसी है पर हर कहानी में कुछ अलग ज़रूर होता है, जिसे सिर्फ प्रेम में डूबे वे दो लोग ही समझ पाते हैं। प्यार आपसी समझ और विश्वास का रिश्ता होता है। भरोसे की नींव मज़बूत हो तो सामान्य सी दिखने वाली प्रेम कहानी भी अमर हो जाती है। आई लव यू विक्रम और इन 9 सालों में हर पल मेरा साथ निभाने के लिए तुम्हारा शुक्रिया। विक्रम मेरी ज़िंदगी में आए वे पहले शख्स हैं, जिनसे मुझसे इतनी मोहब्बत हुई। ऐसा नहीं है कि हमारी शादी में कोई रुकावट आई ही नहीं थी पर उन सब का असर हमने हमारे किसी भी रिश्ते पर नहीं पड़ने दिया। तो इस तरह मुक़म्मल हुआ था मेरा पहला प्यार...'
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